दुनियाभर में ओमिक्रॉन और कोरोना के बढ़ते केसों के बाद पाबंदिया लगाना शुरू कर दी हैं। स्कूल बंद कर दिए गए हैं। वर्क फ्रॉम होम पर जोर दिया जा रहा है। इस बीच जिम्बाब्वे में कम उम्र की लड़कियों के प्रेग्नेंट होने के मामले तेजी से बढ़े हैं। लड़कियां 12-13 साल की उम्र में ही प्रेग्नेंट हो रहीं हैं और स्कूल छोड़ रही हैं। सरकार और कार्यकर्ताओं ने इसके लिए कई कदम भी उठाए हैं लेकिन इसमें किसी तरह का सुधार नहीं देखा जा रहा है।
कोविड महामारी के दौरान जिम्बाब्वे और अन्य दक्षिणी अफ्रीकी देशों में कम उम्र की लड़कियों के गर्भधारण में काफी बढ़ोतरी देखी गई है। वर्जीनिया भी उन्हीं लड़कियों में से एक हैं। जिम्बाब्वे लंबे समय से कम उम्र की लड़कियों के गर्भधारण और बाल विवाह से जूझ रहा है।
COVID-19 की चपेट में आने से पहले भी देश में हर तीन लड़कियों में से एक की शादी 18 साल से पहले कर दी जाती थी। इसके कई कारण हैं, जैसे- लड़कियों का प्रेग्नेंट हो जाना, बाल विवाह को लेकर कानून का सख्त न होना, गरीबी, सांस्कृतिक और धार्मिक प्रथा।
कोविड महामारी ने इस स्थिति को और खराब कर दिया है। डेढ़ करोड़ आबादी वाले इस देश में मार्च 2020 में सख्त लॉकडाउन लगाया गया और बीच-बीच में इसमें छूट दी गई। लॉकडाउन के कारण लड़कियों पर बहुत बुरा असर पड़ा। उन्हें गर्भ निरोधक गोलियों और अस्पताल की सुविधा नहीं दी गई। कार्यकर्ताओं और अधिकारियों का कहना है कि कई लड़कियां यौन शोषण का शिकार हुईं या उन्होंने शादी और गर्भावस्था को गरीबी से बाहर निकलने का एक तरीका मान लिया।
पुलिस के प्रवक्ता पॉल न्याथी ने कहा कि परिवारों और अधिकारियों ने लंबे समय से ऐसे मामलों को छुपाया है। नाबालिग को ही विवाह के लिए मजबूर कर दिया जाता है। परिवार अक्सर दोषी से समझौता करने की कोशिश करते हैं। उस पर लड़की से शादी करने और उसके परिवार को मवेशी या पैसे देने का दबाव डालते हैं। फिर वे पुलिस को मामले की रिपोर्ट नहीं करने के लिए सहमत होते हैं। आखिर में पीड़ित लड़की के परिवार वाले ही उसके शोषण में सहभागी बन जाते हैं।
जिम्बाब्वे के पास कोई सही आंकड़ा नहीं है कि कितनी प्रेग्नेंट लड़कियों ने स्कूल छोड़ा लेकिन ऐसे मामलों में तेजी से वृद्धि हो रही है। कई लड़कियां बिना कारण बताए ही स्कूल छोड़ देती हैं इसलिए सही आंकड़े बता पाना सरकार के लिए एक सिरदर्द है।
महिला मामलों के मंत्री सिथेम्बिसो न्योनी के अनुसार, साल 2018 में करीब 3 हजार लड़कियों ने प्रेग्नेंसी के कारण स्कूल छोड़ा। साल 2019 में ये आंकड़ा थोड़ा कम रहा लेकिन साल 2020 में ये आंकड़ा बढ़कर 4,770 हो गया। और साल 2021 के पहले दो महीनों में ही करीब 5 हजार प्रेग्नेंट लड़कियों ने स्कूल छोड़ा।
देश में कम उम्र की लड़कियों की बढ़ती प्रेग्नेंसी को देखते हुए जिम्बाब्वे की सरकार ने अगस्त 2020 में अपने कानून में बदलाव कर प्रेग्नेंट छात्राओं को भी स्कूल आने की अनुमति दे दी। कार्यकर्ताओं और अधिकारियों ने इस कदम की सराहना की और इसे एक उम्मीद के रूप में देखा।
लेकिन ये नई नीति पूरी तरह से असफल रही है। प्रेग्नेंट लड़कियां कानून में बदलाव के बावजूद भी स्कूल में वापस नहीं आ रहीं हैं। पैसों की कमी, सामाजिक प्रथाएं, क्लास में परेशान किए जाने जैसे कई कारणों से लड़कियां दोबारा स्कूल नहीं जा पा रहीं हैं।
जब कानून में बदलाव हुआ तो प्रेग्नेंट वर्जीनिया ने भी दोबारा स्कूल जाने की कोशिश की थी। अधिकारियों ने उन्हें और उनके माता-पिता को इसके लिए प्रोत्साहित भी किया लेकिन इसके बाद उनके आसपास के लोगों ने वर्जीनिया का खूब मजाक बनाया। वहां के लोग एक प्रेग्नेंट लड़की को स्कूल यूनिफॉर्म में देखने के आदी नहीं थे जिसका शिकार वर्जीनिया को बनना पड़ा।